रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
--अहमद फ़राज़
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
--जौन एलिया
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
--अहमद फ़राज़
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
--मिर्ज़ा ग़ालिब
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
--नासिर काज़मी
वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए
--राजेंद्र मनचंदा बानी
मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था
इस वास्ते अपनों से मोहब्बत नहीं करते
--साक़ी फ़ारूक़ी
बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका
हम जिस पे मर मिटे वो हमारा न हो सका
--शकेब जलाली
दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी
इंतिहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल
हो गया
--फ़ानी बदायुनी
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता
--मुज़्तर ख़ैराबादी
ज़माने भर के ग़म या इक तिरा ग़म
ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे
--हफ़ीज़ होशियारपुरी
हो दूर इस तरह कि तिरा ग़म जुदा न हो
पास आ तो यूँ कि जैसे कभी तू मिला न हो
--अहमद फ़राज़
ये हमीं हैं कि तिरा दर्द छुपा कर दिल में
काम दुनिया के ब-दस्तूर किए जाते हैं
--अज्ञात
कुछ दिन के बा'द उस
से जुदा हो गए 'मुनीर'
उस बेवफ़ा से अपनी तबीअत नहीं मिली
--मुनीर नियाज़ी
शौक़ चढ़ती धूप जाता वक़्त घटती छाँव है
बा-वफ़ा जो आज हैं कल बे-वफ़ा हो जाएँगे
--आरज़ू लखनवी
ये बात तर्क-ए-तअल्लुक़ के बाद हम समझे
किसी से तर्क-ए-तअल्लुक़ भी इक तअल्लुक़ है
--अज्ञात
कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो
ये बातें
पाई न सज़ा और वफ़ा कीजिए उस से
--ख़्वाजा मीर दर्द
तेरे ही ग़म में मर गए सद-शुक्र
आख़िर इक दिन तो हम को मरना था
--निज़ाम रामपुरी
तिरे सुलूक का ग़म सुब्ह-ओ-शाम क्या करते
ज़रा सी बात पे जीना हराम क्या करते
--रईस सिद्दीक़ी
उस ने आवारा-मिज़ाजी को नया मोड़ दिया
पा-ब-ज़ंजीर किया और मुझे छोड़ दिया
--जावेद सबा
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