The Delhi Sultanate - Hmgyan |
How Did Muslim Sultans Invade India?
इसी बीच 1175 में गज़नी का सुल्तान मोहम्मद ग़ोरी (Muhammad Ghori) भारत आया। मुहम्मद ग़ोरी का भारत आने का मकसद था, अपनी सल्तनत का ज्यादा से ज्यादा विस्तार करना और भारत में अपनी हुकूमत कायम करना। मुहम्मद ग़ोरी का यह भारत अभियान 1175 में शुरू होता है। 1175 से लेकर 1194 तक उसने भारत में कई हमले किए। उसने मुल्तान, लाहौर, पेशावर और सिंध जैसे राज्यों को जीतकर भारत के एक बड़े हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया। जब मोहम्मद ग़ोरी अपने इस विजय अभियान में आगे बढ़ रहा था और भारत में उसका साम्राज्य फैलता जा रहा था। तब आगे चलकर उसका सामना दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान से हुआ।
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ग़ोरी को अपने इस अभियान में सबसे बड़ी टक्कर पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) से मिली। 1191 में तराइन के मैदान में पृथ्वीराज और ग़ोरी की सेना आमने सामने थी। इस लड़ाई में मोहम्मद ग़ोरी की हार हुई और मोहम्मद ग़ोरी भी मरते मरते बचा और वह बड़ी मुश्किल से गज़नी वापिस लौट पाया। मोहम्मद ग़ोरी की इस हार ने उसे भारत पर एक और हमला करने का मौका दिया। गज़नी पहुंचने पर उसने युद्ध के लिए फिर से तैयारी की और 1192 में तराइन के उसी मैदान में एक बार फिर से पृथ्वीराज और ग़ोरी की सेना आमने सामने थी। इस युद्ध को तराइन की दूसरी लड़ाई के रूप में याद किया जाता है। वैसे तो मोहम्मद ग़ोरी की सेना पृथ्वीराज की सेना से कम थी, लेकिन इस बार वह दोगुनी तैयारी के साथ भारत वापिस आया था। इस लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई।
तराइन
की यह दूसरी लड़ाई भारत के इतिहास के नजरिये से काफी इम्पॉर्टेंस रखती है या यूं
कहें कि ये लड़ाई भारत के इतिहास का निर्णायक मोड़ थी। इस लड़ाई में मोहम्मद गौरी
की जीत के बाद भारत में पहली बार मुस्लिम शासन कायम हो गया।
यहां
एक इंट्रेस्टिंग फैक्ट याद रखने लायक है। मोहम्मद ग़ोरी ही वो सुल्तान थे, जिनको
भारत में मुस्लिम शासन लागू करने का क्रेडिट दिया जाता है। गौरी से पहले भी
भारत में मुस्लिम इन्वेडर्स आ चुके थे, लेकिन वो भारत में
मुस्लिम राज कायम नहीं कर पाए। मोहम्मद गौरी भारत में परमानेंट सेटलमेंट बनाने में
कामयाब हो गए थे।
इसके
बाद से भारत में हिंदू राज्यों का डाउनफॉल होना शुरू हो गया। भारत के हिंदू राजाओं
के बीच एकता ना होना मोहम्मद ग़ोरी की कामयाबी का एक बड़ा कारण था। मोहम्मद ग़ोरी के
इन सक्सेसफुल हमलों ने और भी विदेशी हमलावरों के लिए भारत के दरवाजे खोल दिए। या
यूं कहें कि मोहम्मद ग़ोरी की कामयाबी ने और भी तुर्क इन्वेडर्स को भारत की तरफ
आमंत्रित किया। ग़ोरी द्वारा भारत में लागू किया गया ये मुस्लिम शासन आगे चलकर कई
शताब्दियों तक इंडियन सबकॉन्टिनेंट पर कायम रहा।
मोहम्मद
ग़ोरी का कोई बेटा नहीं था। इसीलिए उसने अपने सबसे वफादार गुलाम और सेनापति कुतुबुद्दीन
ऐबक को भारत की सत्ता सौंपी और वह खुद गज़नी वापिस लौट गया। 1206 में मुहम्मद ग़ोरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली
का सुल्तान बनाया गया। कुतुबुद्दीन ऐबक अपनी मृत्यु तक दिल्ली के सुल्तान के
रूप में दिल्ली पर राज करता रहा। कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में पहली मुस्लिम
डाइनेस्टी की स्थापना की, जिसे स्लेव डाइनेस्टी
यानी गुलाम वंश कहा जाता है और यहीं से भारत में दिल्ली सल्तनत की
स्थापना और शुरुआत होती है। इसीलिए कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में पहली मुस्लिम
डायनेस्टी के साथ साथ दिल्ली सल्तनत का भी फाउंडर माना जाता है।
ये
दिल्ली सल्तनत भारत में 326 सालों तक कायम
रही और इसमें आगे चलकर पाँच वंश हुए। गुलाम वंश, खिलजी
वंश, तुगलक वंश, सैय्यद वंश और लोदी
वंश।
इन पांचों डाइनेस्टीज़ मिलाकर ही दिल्ली सल्तनत बनती है। दिल्ली सल्तनत की स्थापना
के बाद दिल्ली अब एक ऐसी राजधानी बन चुकी थी जिसका कंट्रोल इंडियन सबकॉन्टिनेंट के
एक बहुत बड़े हिस्से पर फैल चुका था।
अभी
हमने जाना था कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में गुलाम वंश की स्थापना की। इसे गुलाम
वंश इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस वंश में हुए तीन बड़े सुल्तान अपनी जिंदगी के
शुरुआती दौर में गुलाम रह चुके थे। इस वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक
मुहम्मद ग़ोरी का गुलाम था। इस वंश का दूसरा बड़ा शासक इल्तुतमिश
कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम था। इस वंश का तीसरा बड़ा शासक बलबन इल्तुतमिश का
गुलाम था। इसीलिए यह राजवंश गुलाम वंश कहलाता है। गुलाम वंश के सभी शासक तुर्क थे।
कुतुबुद्दीन ऐबक
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बात करते हैं, दिल्ली सल्तनत के पहले सुल्तान और गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक की। कुतुबुद्दीन ऐबक (Qutb al-Din Aibak) का जन्म तुर्किस्तान के एक नामचीन परिवार में हुआ था, लेकिन वह बचपन में ही अपने परिवार से बिछड़ गया और उसे गुलाम के रूप में बाजार में बेच दिया गया। ऐबक बचपन से ही काफी होनहार लड़का था। एक व्यापारी उसे गुलाम के रूप में बेचने के लिए गज़नी ले गया। वहां मुहम्मद ग़ोरी ने उसे खरीद लिया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने गुणों से ग़ोरी को काफी प्रभावित किया और वह धीरे धीरे मुहम्मद ग़ोरी का सबसे खास और वफादार दास बन गया। वो अपनी काबिलियत के दम पर धीरे धीरे एक पद से दूसरे पद पर जा पहुंचा और ऐसा करते करते ही वो दिल्ली की गद्दी तक पहुंच गया और दिल्ली का सुल्तान बन गया।
ऐबक
को भारत में दो प्रसिद्ध इमारतें बनवाने का क्रेडिट दिया जाता है। ऐबक की बनवाई
पहली इमारत है- कुव्वत-उल-मस्जिद और दूसरी इमारत है कुतुब मीनार। ये
दोनों इमारतें दिल्ली के महरौली में मौजूद हैं।
1210 में
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद आबिद के बेटे आराम शाह को हिंदुस्तान का
सुल्तान घोषित किया गया,
लेकिन वो ज्यादा दिन तक राज नहीं कर पाया और महज एक साल बाद ही
कुतुबुद्दीन ऐबक के गुलाम रह चुके इल्तुतमिश ने उसे युद्ध में पराजित कर
दिया और इस तरह 1211 ई में इल्तुतमिश दिल्ली का
सुल्तान बन गया।
इल्तुतमिश
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इल्तुतमिश (Shams ud-Din Iltutmish) का जन्म तुर्कों के इल्बरी कबीले में हुआ था। इल्तुतमिश बचपन से ही काफी सुंदर और होनहार लड़का था। इसी वजह से उसके पिता उसे सबसे ज्यादा प्यार करते थे। इस बात से इल्तुतमिश के भाइयों को उससे ईर्ष्या होने लगी और एक दिन वे लोग उसे घर से बहकाकर ले गए और बुखारा जाने वाले घोड़ों के सौदागर के हाथों उसे बेच दिया। इसके बाद इल्तुतमिश को कई बार बेचा गया और यही करते करते वह दिल्ली पहुँच गया और दिल्ली में उसे आखिरी बार कुतुबुद्दीन ऐबक ने खरीदा।
कुतुबुद्दीन ऐबक के अभियानों और लड़ाइयों में इल्तुतमिश भी अब उसके साथ जाने लगा। ऐबक के अभियानों में इल्तुतमिश ने गज़ब का पराक्रम दिखाया। इससे खुश होकर ऐबक ने उसे गुलामी से मुक्त कर दिया और उसे अपने खास व्यक्तियों में शुमार कर लिया। इसके बाद इल्तुतमिश को सल्तनत में ऊँचे पद मिलने लगे। यहां तक कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी बेटी की शादी इल्तुतमिश के साथ कर दी और उसे बदायूं का गवर्नर बना दिया। इस तरह एक मुकाम से दूसरे मुकाम तक पहुँचते पहुँचते इल्तुतमिश गुलाम से सुल्तान बन गया।
गयासुद्दीन बलबन
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गुलाम वंश का तीसरा और अंतिम बड़ा सुल्तान था, गयासुद्दीन बलबन (Ghiyas ud din Balban)। बलबन का जन्म इल्तुतमिश की तरह तुर्कों के इल्बरी कबीले में हुआ था। बचपन में ही बलबन को मंगोलों ने पकड़ लिया और वे उसे गज़नी ले गए, जहां उसे एक नामचीन व्यक्ति ख्वाजा जमालुदीन को बेच दिया गया। ख्वाजा बलबन की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुआ और उसने बलबन को शिक्षा दिलवाकर, उसे काबिल और सभ्य व्यक्ति बना दिया। इसके बाद वो उसे दिल्ली ले गया, जहां सन् 1232 में इल्तुतमिश ने उसे खरीद लिया। बलबन ने अपनी प्रतिभा से सुल्तान और सल्तनत के लोगों का विश्वास जीतकर एक पद से दूसरे पद पर जा पहुंचा और आखिरकार खुद दिल्ली का सुल्तान बन गया। बलबन ने 1266 से लेकर 1287 तक 21 साल हुकूमत की।
बलबन की मृत्यु के बाद उसका पोता कैकुबाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा। उसने खिलजी वंश के एक अफगानी सैनिक जलालुद्दीन खिलजी को अपना सेनापति बना लिया। जलालुद्दीन खिलजी ने कैकुबाद की हत्या करवा दी और खुद सुल्तान बन गया। इस तरह गुलाम वंश का अंत हुआ और खिलजी वंश की शुरुआत हुई।
जलालुद्दीन खिलजी
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जब जलालुद्दीन खिलजी (Jalal-ud-din Khalji) सुल्तान बना उस वक्त उसकी उम्र 70 साल थी। इसीलिए वो सिर्फ छह साल तक ही शाशन कर पाया और उसके भतीजे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा की हत्या कर दी और खुद सुल्तान बन गया। जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का पहला ऐसा सुल्तान था जिसने ये विचार दिया कि शासन जनता के समर्थन से चलना चाहिए और क्योंकि भारत में हिन्दू आबादी ज्यादा है। इसीलिए भारत को इस्लामिक राज्य बनाना ठीक नहीं। जलालुदीन ने बलबन द्वारा बनाए गए कड़े नियमों को भी हटा दिया। बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने उन नियमों को फिर से लागू कर दिया।
अलाउद्दीन खिलजी
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अलाउद्दीन (Alauddin Khilji) के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत की सीमाएं उत्तर भारत को पारकर दूर दूर तक फैल चुकी थी। 1316 में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद एक दो साल में ही खिलजी वंश बिखर गया और उसका अंत हो गया और इस तरह दिल्ली में एक नए वंश की शुरुआत हुई, जिसे तुगलक वंश कहा जाता है।
गयासुद्दीन तुगलक
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तुगलक वंश ने दिल्ली पर 1320 से लेकर 1413 तक राज किया। इस वंश का पहला शासक गयासुद्दीन तुगलक (Ghiyas-ud-din Tughlaq) था। वह बुनियादी रूप से तुर्क भारतीय था। यानी उसके पिता तुर्किस्तान से थे और उसकी मां हिंदू थी। गयासुद्दीन ने पांच साल तक दिल्ली पर राज किया। उसने दिल्ली के पास एक नया शहर बसाया, जिसे तुगलकाबाद कहा जाता है।
इतिहासकार
मानते हैं कि गयासुद्दीन के बेटे मोहम्मद बिन तुगलक ने अपने पिता की हत्या
कर दी और दिल्ली की गद्दी को हथिया लिया। मोहम्मद बिन तुगलक ने 26
सालों
तक दिल्ली पर राज किया। मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु 1351 में
हुई। उसका उत्तराधिकारी उसका चचेरा भाई फिरोजशाह तुगलक बना जो कि तुगलक वंश
का आखिरी बड़ा सुल्तान था। फिरोज शाह की मृत्यु के बाद उसके वंशजों के बीच दिल्ली
की सत्ता के लिए संघर्ष होने लगा। ये वो दौर था जब दिल्ली पर राज करने की पकड़
काफी कमजोर हो चुकी थी।
तैमूर लंग
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इसी मौके का फायदा उठाया समरकंद के सुल्तान तैमूर लंग (Shuja-ud-din Timur) ने। तैमूर लंग ने 1398 में दिल्ली पर हमला बोल दिया। तैमूर के हमलों ने दिल्ली सल्तनत को हिलाकर रख दिया। तैमूर की भारत पर राज करने की ख्वाहिश नहीं थी। इसीलिए उसने दिल्ली को जमकर लूटा और पाँच दिनों तक उसकी सेनाओं ने भयंकर नरसंहार किया। इस तरह दिल्ली में लूटपाट और मार काट करने के बाद वह समरकंद वापिस लौट गया। इसके बाद तुगलक वंश का अंत हुआ और दिल्ली में एक नया राजवंश आया, जिसे सैय्यद वंश कहा जाता है।
सैय्यद वंश
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Sayyid Dynasty
- Khizr Khan - 1414–1421
- Mubarak Shah - 1421–1434
- Muhammad Shah - 1434–1445
- Alam Shah - 1445–1451
सैय्यद
वंश के सुल्तान भी तुर्क ही थे। यह एक बेहद छोटी डायनेस्टी थी, जिसका
शासन काल महज 30-35 सालों में
ही समाप्त हो गया। सैयद वंश के शासन काल के बारे में बेहद कम ऐतिहासिक तथ्य मिलते
हैं। 1451 में यह वंश भी खत्म हो गया। इसके बाद
शुरुआत होती है। दिल्ली सल्तनत के पांचवें और आखिरी वंश की जिसे लोदी वंश
कहा जाता है।
लोदी वंश
लोदी वंश के सुल्तान अफगानी थे। लोदी वंश की नींव बहलोल खान लोदी (Bahlul Khan Lodi) ने 1451 में डाली थी। वह लोदी वंश का पहला सुल्तान बना जिसने दिल्ली पर राज किया। उसकी मृत्यु के बाद उसका बेटा सिकंदर लोदी (Sikandar Khan Lodi) दिल्ली की गद्दी पर बैठा और सिकंदर लोदी के बाद उसका बेटा इब्राहिम लोदी (Ibrahim Khan Lodi) 1517 में दिल्ली का सुल्तान बना। इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत का आखरी सुल्तान साबित हुआ। 1526 में उज्बेकिस्तान से आए मुगल हमलावर बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी की हत्या कर दी। इब्राहिम लोदी की मृत्यु के साथ ही भारत में 300 सालों तक कायम रहने वाली दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया और एक नए एंपायर की शुरुआत हुई, जिसे मुगल एंपायर (Mughal Empire) कहा जाता है।
Facts
आपको एक इंटरेस्टिंग फैक्ट बताना
चाहता हूं। ये सुल्तान शब्द जो है यह राजा और बादशाह शब्द का पर्यायवाची (synonym) नहीं है
बल्कि सुल्तान एक उपाधि थी जो सिर्फ तुर्की के मुस्लिम शासकों को दी जाती
थी। यही कारण है कि आप देखते हों कि किसी भी मुगल बादशाह के लिए सुल्तान शब्द का
इस्तेमाल नहीं किया जाता। सुल्तान शब्द सिर्फ उन्हीं मुस्लिम राजाओं के नाम के साथ
लगता है जो तुर्की और अफगान ओरिजन के थे।
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